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एक मजबूर आदमी !

kanafoosi (BHARDWAJ MISHRA)
kanafoosi (BHARDWAJ MISHRA)
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आज सुबह चौराहे पर,
भीख माँगता,
धूल फाँकता,
एक मजबूर आदमी दिखा था !

तमाशबीनो की भीड़ में
नहीं अदद एक हाथ
था उसके साथ !
फ़कत मैं आगे बड़ा था !

देखकर मुझे,
कई हाथ और
मदद को आगे बड़े,
मजबूर आदमी की झोली झट भर गई !

कितना नेक हूँ,
सोचकर,आगे चल दिया
मेरी वजह से लोगों ने
किसी का तो भला किया !

अभी शाम को,आहाते में,
थामे शराब को,
काजू के टुकड़े चबाता,
वही मजबूर आदमी देखता हूँ !

मूर्खता पर टकराता जाम,
ले रहा था मूर्खों के नाम,
नहीं पकड़ सका उसका गिरेबां, क्योंकि
वह एक मजबूर आदमी था !

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