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हरिया और गुलाबो
१
हरिया बैचेनी से दालान में टहल रहा था ! कमरे से उसकी पत्नी की आती दर्दभरी चीखें उसे और भी अधीर किये जा रही थी !
गुलाबो, हरिया की पत्नी इस समय प्रसव पीड़ा से गुजर रही थी और दर्द की अधिकता के कारण उसकी चीखें बाहर तक सुनाई पड़ रही थी !
“हे भगवान बचाएले” ….. हरिया होंठों में बुदबुदाया !
तभी कमरे का दरवाजा खोलकर सुखनी दाई बाहर निकली…. “घानी ओ घानी”- दाई के स्वर में चिंता थी …. “गुलबिया के अस्पताल लैके जायेक पड़ी !”
“पर काकी तू कहले राहलु “…..हरिया ने व्यग्रता से कहना चाहा………
“विलम्ब न कर घानी, समय हाथ से निकल जाई!”
“ठीक है काकी….कुछ करत हई”- हरिया कहता हुआ बाहर की ओर लपका ! जिस बात का हरिया को डर था वही हुआ…! हरिया के गाँव से सरकारी अस्पताल १८ किमी. दूर था उसमें से भी १३ किमी. का रास्ता कच्चा था जिस पर दिन में भी कोई आने-जाने का साधन उपलब्ध नहीं था फिर अब तो रात के दस बज रहे थे ! अधिकतर लोग पैदल और कुछ साईकिल पर इस रास्ते को पार करते थे ऐसे में हरिया के सामने बंसी के सामान ढोने वाले रिक्शे के सिवाय ऐसा कोई साधन नहीं था जिस पर वो अपनी पत्नी गुलाबो को अस्पताल तक ले जा सके !
हरिया दिन में भी गुलाबो को सरकारी अस्पताल ले जा सकता था परन्तु वहाँ भी उसे गुलाबो को अस्पताल के बरामदे में ही लिटाना पड़ता और खर्च भी घर पर बच्चा जनने से तिगुना आ जाता !
वैसे भी गाँव के सारे बच्चों की डिलीवरी तो घरों में ही हुई थी सिवाय प्रधान जी के पोते के और प्रधान जी से हरिया का क्या मुकाबला था ! यही सब सोचकर हरिया ने गुलाबो का प्रसव घर पर ही कराने की सोची थी ! गुलाबो कमजोर थी क्योंकि हरिया उस पर इतना नहीं खर्च कर पाया जितना उसने मेडिकल कैंप में सुना था, वो मेडिकल कैंप अभी पांच-छह महीने पहले ही लगा था गाँव में ! उस मेडिकल कैंप में हरिया ने गुलाबो को कोई सुई भी लगवाई थी हालांकि गुलाबो तैयार नहीं थी लेकिन एक तो हरिया उस कैंप में डाक्टरों की बातें सुनकर इतना खुश हो गया दूसरे सुई मुफ्त लग रही थी इसलिए उसने गुलाबो की एक न सुनी थी ! गुलाबो की कमजोरी को ही सुखनी दाई ने उसके लिए दिक्कत बताया था लेकिन सुखनी दाई को भगवान पर भरोसा था खुद हरिया को भी………!
२
“धीरे ले चल घानी”-सुखनी दाई बोली !
हरिया बंसी से माँगकर रिक्शा ले आया था तथा रिक्शे को पैदल ही खिंच रहा था क्योंकि न तो गुलाबो की दशा ऐसी थी और न ही रास्ते की कि हरिया उस पर रिक्शा चला सके, फिर रास्ता भी इतना उबड़-खाबड़ था कि जब-जब रिक्शा किसी गड्डे में पड़ता था तो गुलाबो कि चीख और हरिया दाई कि गुहार साथ-साथ निकल पड़ती थी !
‘धीरे चलत हई काकी”- हरिया कांपते हुए स्वर में बोला !
“हिम्मत रख गुलबिया हिम्मत रख”-सुखनी दाई गुलाबो को दिलासा देते हुए बोली परन्तु सुखनी दाई असल में जानती थी कि प्रसूता अब सिर्फ भगवान भरोसे थी !
“अब नाही बचब……नाही बचब”- गुलाबो चीख मारकर बोली !
“अएसा न बोल गुलाबो” हरिया रोते हुए बोला – “अएसा न बोल, पक्की सड़क बस कोस भर रह गई है !
“घानी”- सुखनी दाई रुआसें स्वर में बोली-“रिक्शा घर की अउर मोड़ ले, गुलबिया तोहें छोड़ के चली गईल”!
हरिया का सारा शरीर सन्न हो गया और फिर जब हरकत में आया तो गुलबिया के मृत शरीर से लिपटकर फूट फूट कर रोने लगा !
.’नाही बचब’ गुलाबो के मुहँ से निकले आखिरी शब्द थे !
“अस.. प .. ताल.. भी नाही”- हरिया रोते-रोते यही वाक्य दोहरा रहा था -पहुं..चा स… क.. ली.. !
नाही पहुं..चा स… क.. ली..!
हरिया समय से अपनी पत्नी को अस्पताल नहीं पहुंचा सका था !
अरविन्द और शांति
१
“देखो जी मुझे न जाने क्यों घबराहट हो रही है”-शांति सकुचाते हुए अरविन्द से बोली !
“धत ! पागल हो रही है क्या”?- अरविन्द अपनी पत्नी को झिड़कते हुए बोला- “कोलकाता का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है ये, सारी सुविधायें हैं यहाँ पर…..यहाँ भी घबराएगी तो हो लिया बच्चा तुझे”…..!
अरविन्द और उसकी पत्नी पश्चिम बंगाल के किसी कोने से राजधानी कोलकाता में अपना जीवन यापन करने आये थे! अरविन्द मजदूरी करके अपना और अपनी पत्नी का भरन-पोषण करता था !
शांति भी छोटा मोटा काम करके अपने पति का हाथ बंटाती थी ! शांति गर्भवती थी और जिस सरकारी डिस्पेंसरी में वह अपना चेकअप करवा रही थी उन्होंने आज की ही डेट डिलीवरी के लिए दे
रखी थी इसीलिए अरविन्द सुबह-सुबह ही शांति को ऑटो रिक्शा में सरकारी अस्पताल ले आया था!
“आप मुझे बहुत जल्दी ले आये हो”- शांति बोली !
अरविन्द ने थोड़ा घूरकर अपनी पत्नी की ओर देखा !
“मेरा मतलब है कि मुझे अभी दर्द तो शुरू हुआ नहीं है”….शांति जल्दी से बोली- और बगल वाली आंटी कह रही थी कि ……………….!
“ओ चुप कर तू और तेरी बगल वाली आंटी”-अरविन्द शांति कि बात को बीच में काटता हुआ बोला- तू क्या चाहती थी ? तू चाहती थी कि तू जब दर्द से बेहाल हो जाती और अपने पैरों पर नहीं आ पाती तो मैं तुझे मरते जीते यहाँ लाता ! अरी मूरख ! ये बड़ा अस्पताल है यहाँ सारे काम कायदे से होते हैं”!
“वो तो ठीक है”- शांति बोली- लेकिन आप मुझे भर्ती क्यों नहीं करवा देते अस्पताल में यहाँ बाहर क्यों बैठाये हुए हैं”!
“मेरे बाप का अस्पताल तो है नहीं”-अरविन्द थोड़ा खीजते हुए बोला- लाइन इतनी बड़ी है कागज़ पत्तर बनने में टाइम तो लगेगा”!
“कितना टाइम लगेगा ? सुबह 7 बजे के आये हैं और अब 11 बज गए हैं”-शांति हैरानी से बोली !
“तू परेशान न हो”- अरविन्द शांति को आश्वस्त करता हुआ बोला- मैं सब पता कर आया हूँ, एक आदमी है, अस्पताल में ही काम करता है कह रहा था कि अगर भर्ती होने में दिक्कत हो रही है तो
तो वो पाँच सौ रुपये लेकर डिस्पेंसरी के कागजों से ही सीधे इमरजेंसी में भर्ती करवा देगा”!
“पाँच सौ रुपये किस बात के लेगा”- शांति ने जानना चाहा !
“ऐसे बड़े अस्पतालों में लगते हैं”-अरविन्द मुस्कुरा कर बोला- “तू नहीं समझेगी”!
“क्यों नहीं समझूंगी”- शांति जल्दी से बोली- “ये कहो की घूस माँग रहा है, हम गरीबों से”! सरकार
इतनी तनखाह दे रही है फिर भी पोस नहीं पड़ता कमीनो को”!
“गाली क्यों दे रही है”-अरविन्द बोला- और तुझे ये किसने कह दिया कि हम गरीब हैं, सरकार कहती है-’32 रुपये एक दिन में अपने खाने पर खर्च करने वाला शहर में गरीब नहीं है’ फिर हम कैसे हुए गरीब”?
“ये कैसा गणित है”- शांति हैरानी से बोली- “इसका मतलब जो भूखा मर जाए वही सरकार कि नजर में गरीब है! सरकार तो चाहती है कि सारे गरीब मर ज……छोड़ो मैं भी क्या बकवास करने लगी! आप देख के आओ…..ऐसे ही भर्ती करा सको मुझे तो ठीक है ! कुछ पैसे बच जायेंगे”!
“ठीक है करता हूँ कुछ………..”- अरविन्द कुछ करने कि आस में अंदर कि ओर चल दिया !
२
रात के आठ बज चुके थे लेकिन अरविन्द कुछ नहीं कर सका था! इस खिड़की से उस खिड़की तक, इस डाक्टर से उस डाक्टर तक, इधर से उधर भाग-भाग के वह बुरी तरह थक चुका था ! शांति को शाम से हल्का दर्द शुरू हो चुका था और अब वो भी बेहाल होने लगी थी! अरविन्द को वो महान पुरुष भी नहीं मिल रहा था जिसने इमरजेंसी में केस करवा देने का वादा किया था ! इस वक्त वो पांच सौ तो क्या हजार रुपये भी माँगता तो अरविन्द एक पल कि भी देरी न लगाता !
“क्या कर रहे हैं आप”- शांति दर्द से तड़पते हुए बोली- “मैं मर जाऊंगी”!
“क्या करूँ शांति कोई सुन ही नहीं रहा”-अरविन्द रुआँसा होकर बोला !
“भाई साहब इन्हें आप इमरजेंसी वार्ड में ले जाइए” शांति की हालत देखकर पास ही खड़े एक सज्जन ने कहा- “इनकी हालत बहुत खराब हो रही है”!
“भैया कोई नहीं सुन रहा”-अरविन्द बोला !
“चलिए मैं चलता हूँ आपके साथ ये तो यहाँ पड़े- पड़े ही…”-सज्जन बोले- “पहले स्ट्रेचर ले आते हैं, उस पर ही इन्हें ले चलेंगे”!
अरविन्द उस आदमी के साथ स्ट्रेचर ले आया और उस पर शांति को लेटाकर इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा!
परन्तु वहाँ ड्यूटी पर तत्पर, कर्तव्यपरायण, डाक्टर ने शांति को देखने से मना कर दिया क्योंकि एक मजदूर के कपड़ों से उसे बदबू आ रही थी ! उसके अनुसार थोड़ी देर बाद उसकी ड्यूटी ख़त्म होने वाली थी इसलिए शांति को नाईट शिफ्ट वाला डाक्टर ही देखेगा !
अब क्या करूँ ?
अरविन्द के सामने अब यही प्रश्न घूम रहा था ! कैसे वो अपनी पत्नी और होने वाले बच्चे की जान बचाए !
“भाई साहब मेरी मानिये”-इमरजेंसी वार्ड में खड़ा एक व्यक्ति बोला- इन्हें आप पास में ही गुप्ता नर्सिंग होम है वहाँ ले जाईये, वहाँ जान बच जायेगी वर्ना यहाँ तो न जाने कब शिफ्ट चेंज होगी, कब ईलाज होगा और अगर अभी जान बच भी गयी तो बाद में मार देंगे, बड़े ही लापरवाह हैं,
आये दिन बच्चे मरते ही रहते हैं इस अस्पताल में”!
इन महानुभाव को इमरजेंसी वार्ड में मरीजों को यह सलाह देते हुए अक्सर देखा जा सकता था !
“क कहाँ हैं”-बदहवास अरविन्द बोला- “कहाँ है ये नर्सिंग होम”!
“बाहर किसी भी ऑटो रिक्शा में बैठ जाईये”,-वह व्यक्ति बोला- वो आपको गुप्ता नर्सिंग होम ले जाकर उतार देगा, तीन चार किमी. दूर है बस”!
अरविन्द जैसे-तैसे मरणासन्न शांति को लेकर भागा !
३
“देखिये आप हमारी बात नहीं समझ रहे हैं”-शानदार काउंटर पर बैठी नर्स अरविन्द से बोल रही थी – “पहले आप बीस हजार रुपये डिपोजिट करवा दीजिये, फिर हम पेशेंट को एडमिट कर लेंगे”!
“मैडम आप नहीं समझ रही”-अरविन्द जल्दी से बोला- मेरी शांति मर रही है आप उसे भर्ती कर लीजिये मैं कहीं से भी पैसों का इंतजाम करके जमा करा दूँगा”!
“सॉरी ये हमारा प्रोसीजर नहीं है हम उधार ईलाज नहीं करते”!- नर्स ने दो टूक जवाब दिया!
अरविन्द को अब समझ आ रहा था की क्यों उस ऑटो रिक्शा वाले ने शांति को अंदर लाने से मना कर दिया और कहा था की पहले आप अंदर से हो आओं ! शायद उसे अरविन्द की हालत देखकर अंदाजा हो गया था की वो गरीब आदमी इस नर्सिंग होम में अपनी पत्नी को भर्ती नहीं करवा पायेगा !
“मैडम में आधे घंटे में पैसे लाता हूँ ! आप ईलाज शुरू करिये !”
“ठीक है”- नर्स बोली – लेकिन आधे घंटे में बीस हजार डिपोजिट नहीं करवाए तो हमको ब्लेम मत करना”!
अरविन्द बाहर ऑटो रिक्शा की तरफ भागा !
लेकिन उसे दुबारा अस्पताल में आने की जरुरत नहीं पड़ी !
अव्यवस्था, अकर्मण्यता, दलाली और मोलभाव के बीच अरविन्द को छोड़कर शांति अजन्मे बच्चे के साथ अनंत यात्रा पर जा चुकी थी !
समय से बहुत पहले अस्पताल पहुंचा देने पर भी अरविन्द अपनी पत्नी को खो चुका था !
समाप्त
कुछ प्रश्न :-
१. क्या असल में यह कथा समाप्त हो गई या पात्र और जगह बदल कर ये दोहराई जा रही है ?
२. आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा ?
३. क्या गरीब आदमी को कभी स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हो भी पाएँगी ?
४. क्या चिकित्सा का क्षेत्र केवल धनोपार्जन के लिए है ?
५. एक जगह जिन्दा आदमी को भी मुर्दा समझा जाता है (सरकारी अस्पतालों में) वहीँ दूसरी जगह मृत आदमी की भी फीस चार्ज कर ली जाती है (प्राइवेट अस्पतालों में ) आखिर क्यों ?
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