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हाल देश का जान रहा है !

kanafoosi (BHARDWAJ MISHRA)
kanafoosi (BHARDWAJ MISHRA)
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रोज खोदा

रोज पीया है पानी

भूल चुका है अब तो

सुख की दो रोटी खानी

झुकी कमर अब अपनी तान रहा है

हाल देश का जान रहा है !

 

हर बार किये हैं

वादे-वादे फकत वादे

लगे हर बार मगर

तुम्हारे नेक इरादे

तुमको अब पहचान रहा है

हाल देश का जान रहा है !

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कुछ न बोलो !

मुंह न खोलो !

कब तक झूठ सहेंगे

चुप रहो ! के हम अपनी कहेंगे !

शैशव से हो अब जवान रहा है

हाल देश का जान रहा है !

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इबारत नई लिखने

तहरीर चौक नहीं जायेंगे

सुधरो ! इतिहास अन्यथा

चौक चांदनी पर बनायेंगे

आम आदमी खुद को कुछ मान रहा है

हाल देश का जान रहा है !

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